नोर्मल डिलीवरी कैसे होती है?

प्रेगनेंसी से डिलीवरी तक का समय

जिस दिन महिला को पता चलता है की उसके गर्भ में एक नन्ही सी जान आ गई है उस दिन से लेकर डिलीवरी के दिन तक का सफर गर्भवती महिला के लिए बहुत खास होने के साथ परेशानियों से भरा हुआ होता है। क्योंकि प्रेगनेंसी के दौरान बॉडी में लगातार हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं, जिसके कारण महिला शारीरिक व् मानसिक रूप से बदलाव महसूस कर सकती है, और इन्ही बदलाव के कारण गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी के दौरान बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इसके बाद भी महिला को अपनी अच्छे से केयर करने की सलाह दी जाती है ताकि गर्भ में शिशु का विकास बेहतर तरीके से हो सके।

गर्भ में शिशु का आना ही महिला के मातृत्व के अहसास को जगा देता है, लेकिन डिलीवरी का समय पास आने पर महिला के मन में यही घूम रहा होता है की उसकी डिलीवरी नोर्मल होगी या सिजेरियन। ज्यादातर गर्भवती महिलाएं नोर्मल डिलीवरी ही पसंद करती है जबकि कुछ महिलाएं दर्द से बचने के लिए या प्रेगनेंसी के दौरान आने वाली परेशानियों के कारण सिजेरियन डिलीवरी की मदद से शिशु को जन्म देती है। लेकिन यह भी सच है की महिला की डिलीवरी किसी भी तरीके से हो, प्रेगनेंसी के दौरान महिला को कितनी ही परेशानी आई हो शिशु के महिला के हाथ में आते ही महिला की सारी परेशानियां गायब हो जाती है।

नोर्मल डिलीवरी कैसे होती है

नोर्मल डिलीवरी में महिला प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म देती है, जिसमे बच्चेदानी का मुँह खुलने के बाद शिशु जन्म लेता है। नोर्मल डिलीवरी होने के दौरान बॉडी में बहुत से लक्षण महसूस होते हैं जैसे की महिला को रुक रुक कर पेट, कमर, पेट के निचले हिस्से में दर्द का अहसास होना, प्राइवेट पार्ट से एमनियोटिक फ्लूड का निकलना, ब्लड फ्लो होना, शिशु का गर्भ में अधिक हलचल करना आदि। ऐसे में इन लक्षणों का बॉडी में महसूस होना ही बच्चेदानी के खुलने का लक्षण होता है, और शिशु के जन्म से पहले एक दम से ही बच्चेदानी का मुँह नहीं खुलता है। साथ ही शिशु के जन्म के लिए बच्चेदानी का मुँह लगभग 10 सेंटीमीटर तक खुलना चाहिए तभी शिशु का जन्म नोर्मल डिलीवरी की मदद से हो पाता है।

ऐसे में जैसे जैसे बच्चेदानी का मुँह खुलने लगता है महिला को दर्द का अहसास भी बढ़ने लगता है, लेकिन यह दर्द एक ही दम नहीं होता है बल्कि रुक रुक कर इसका अनुभव होता है। पहली स्टेज में बच्चेदानी का मुँह जीरो से 3 सेंटीमीटर तक खुल सकता है, उसके बाद यह 4 से 7 या 8 सेंटीमीटर तक खुल सकता है, और उसके बाद यह आठ से 10 सेंटीमीटर तक खुल सकता है। और जैसे जैसे बच्चेदानी का मुँह खुलता जाता है वैसे वैसे महिला को प्रसव पीड़ा बढ़ती है और बच्चेदानी का पूरा मुँह खुलते ही शिशु का जन्म हो जाता है, और ऐसा भी कोई जरुरी नहीं होता है की नोर्मल डिलीवरी के दौरान टाँके नहीं लगती है बल्कि कुछ महिलाएं जो सामान्य प्रसव से शिशु को जन्म देती है उन्हें भी टाँके लग सकते हैं।

नोर्मल डिलीवरी के लक्षण

  • शिशु का भार नीचे की तरफ महसूस होना और सीने व् पेट में हल्कापन महसूस होना।
  • गर्भाशय में संकुचन का अधिक होना।
  • प्राइवेट पार्ट से तरल पदार्थ यानी एमनियोटिक फ्लूड का निकलना।
  • पेट, कमर, पेट के निचले हिस्से में रुक रुक कर दर्द का अनुभव होना या मांसपेशियों में खिंचाव अनुभव होना।
  • प्राइवेट पार्ट से तरल पदार्थ के साथ खून की बूंदे महसूस होना।
  • पेट से जुडी समस्या जैसे की कब्ज़ आदि का अधिक होना।
  • बहुत अधिक नींद आना लेकिन बेचैनी का अनुभव होने के कारण सोने का मन न करना।
  • जोड़ो में दर्द व् खिंचाव का अनुभव होना।

तो यह है नोर्मल डिलीवरी कैसे होती है इससे जुडी कुछ बातें, ऐसे में नोर्मल डिलीवरी के लिए महिला को अपनी अपनी सेहत का अच्छे से ध्यान रखना चाहिए ताकि डिलीवरी के दौरान किसी भी तरह की परेशानी न आये। साथ ही यदि महिला की गर्भाशय की सतह पतली होती है तो महिला को अपनी दुगुनी केयर करनी चाहिए, क्योंकि यदि गर्भाशय की सतह कमजोर होती है तो इसके कारण समय पूर्व प्रसव जैसी परेशानी का सामना महिला को करना पड़ सकता है।

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