गर्भावस्था में गोभी का सेवन – करना चाहिए या नहीं? पूरी जानकारी – Pregnancy me Gobhi ka Sevan – Karna Chahiye ya Nahi
गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान हर महिला चाहती है कि वह जो भी खाए, उससे उसके बच्चे और उसकी सेहत दोनों को फायदा मिले। इस समय खान-पान में की गई एक छोटी-सी गलती भी असर डाल सकती है, इसलिए हर सब्जी या फल को खाने से पहले उसके फायदे और नुकसान जान लेना ज़रूरी है। आज हम बात करेंगे गोभी (Cauliflower) के बारे में – जो हर घर की आम सब्जी है, लेकिन क्या इसे गर्भवती महिलाओं को खाना चाहिए? आइए जानते हैं विस्तार से।
अगर आप गर्भवती हैं या आपके घर में कोई महिला गर्भवती है, तो नवरात्रि के नौ दिनों में यह लेख खास आपके लिए है। नवरात्रि देवी शक्ति की उपासना का पर्व है, लेकिन लोक मान्यताओं के अनुसार इस समय किए गए टोटके, मंत्र-सिद्धि और तांत्रिक साधनाएं सामान्य दिनों की तुलना में अधिक प्रभावशाली मानी जाती हैं। इसी कारण गर्भवती महिलाओं को इस समय विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है।
नवरात्रि के दौरान वातावरण पूजा-पाठ और भक्ति से भर जाता है। लोग उपवास करते हैं, भजन गाते हैं और देवी माँ के मंत्रों का जप करते हैं। लोककथाओं के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिनों में गुप्त साधनाएं और टोटके ज्यादा किए जाते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे जल्दी सिद्ध होते हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं को बुज़ुर्ग नवरात्रि में खास सतर्क रहने की सलाह देते हैं।
गर्भावस्था के दौरान महिला का शरीर और मन दोनों ही संवेदनशील होते हैं। इस समय महिला का मानसिक और शारीरिक संतुलन बहुत महत्वपूर्ण होता है। लोक मान्यता है कि नकारात्मक ऊर्जा या तांत्रिक साधनाओं का असर गर्भवती महिला पर जल्दी हो सकता है। इसलिए इस दौरान उन्हें विशेष रूप से सावधानी बरतनी चाहिए।
गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए – हल्की पूजा और भक्ति करें। सुबह-शाम दीपक जलाएं, भजन या मंत्र सुनें। – सकारात्मक माहौल बनाए रखें। घर में साफ-सफाई, सुगंधित वातावरण और शांत माहौल रखें। – ध्यान और प्राणायाम करें। हल्का ध्यान और श्वसन अभ्यास मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देता है। – रात में घर पर रहें। विशेषकर गांव या सुनसान इलाकों में रात में बाहर जाने से बचें। – डॉक्टर की सलाह लें। अगर उपवास रखना हो तो पहले डॉक्टर से सलाह लें।
गर्भवती महिला को क्या नहीं करना चाहिए – तांत्रिक साधना या गुप्त टोटकों के पास न जाएं। – भारी उपवास न रखें। डॉक्टर की अनुमति के बिना। – अजनबी ताबीज, नींबू-मिर्च या अन्य अनजानी चीज़ें न लें। – रात में अकेले मंदिर या सुनसान जगह पर न जाएं। – नकारात्मक माहौल, ऊँची आवाज़ या डरावनी बातों से दूर रहें।
सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के छोटे उपाय – घर में देवी माँ की तस्वीर के सामने रोज़ दिया जलाना। – हल्के भजन और मंत्र सुनना। – नमक-पानी से पोंछा लगाना। लोक मान्यता है इससे नकारात्मक ऊर्जा निकलती है। – सुबह की धूप या हल्की चांदनी में बैठना (अगर स्वास्थ्य अनुमति दे)।
नवरात्रि शक्ति और भक्ति का पर्व है, लेकिन गर्भवती महिलाओं के लिए यह समय संवेदनशील माना जाता है। लोक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार, इस समय टोटके और मंत्र-सिद्धि ज्यादा होती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए। हल्की पूजा-पाठ करें, सकारात्मक माहौल बनाए रखें और किसी भी अज्ञात साधना, टोटके या भारी उपवास से बचें। इससे आप और आपका बच्चा दोनों सुरक्षित और सकारात्मक रहेंगे।
गर्भावस्था के दौरान सही पोषण लेना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि यह माँ और शिशु दोनों के विकास में अहम भूमिका निभाता है। अगर आप अपने आहार में स्वस्थ और पौष्टिक सब्जियों को शामिल करना चाहती हैं, तो बाकला (Broad Beans या Fava Beans) एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। यह फोलेट, आयरन, फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम और पोटैशियम से भरपूर होता है, जो गर्भवती महिलाओं के लिए कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गर्भावस्था में बाकला खाना सुरक्षित है या नहीं, इसके स्वास्थ्य लाभ, खाने के सही तरीके और इससे जुड़ी कुछ जरूरी सावधानियों के बारे में।
बाकला (Broad Beans) क्या है?
बाकला, जिसे Fava Beans या वलरी मटर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रकार की हरी फलियों (Legumes) में से एक है। यह प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत होती है और खासतौर पर प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती है।
गर्भावस्था में बाकला खाने के 7 बड़े फायदे
1. खून की कमी (Anemia) को दूर करता है
गर्भावस्था के दौरान शरीर को ज्यादा आयरन (Iron) की जरूरत होती है, जिससे हीमोग्लोबिन बढ़ता है और खून की कमी (एनीमिया) नहीं होती। बाकला में आयरन भरपूर मात्रा में होता है, जिससे यह कमजोरी, चक्कर और थकान से बचाने में मदद करता है।
2. शिशु के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास में सहायक
इसमें मौजूद फोलेट (Folate / Vitamin B9) गर्भ में पल रहे शिशु के दिमाग और रीढ़ की हड्डी (Spinal Cord) के विकास में अहम भूमिका निभाता है। ✔ यह न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (जैसे स्पाइना बिफिडा) से बचाने में मदद करता है। ✔ प्रेग्नेंसी में फोलेट की पर्याप्त मात्रा माँ और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद होती है।
3. पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है
✔ बाकला में फाइबर (Fiber) अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो पाचन को सही रखता है। ✔ यह कब्ज, अपच और पेट फूलने की समस्या को कम करता है, जो प्रेग्नेंसी में आम होती है।
4. हड्डियों और दाँतों को मजबूत करता है
✔ बाकला में कैल्शियम और मैग्नीशियम प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो माँ और शिशु की हड्डियों और दाँतों को मजबूत बनाते हैं। ✔ गर्भ में शिशु की हड्डियों के विकास में यह काफी सहायक होता है।
5. ब्लड प्रेशर कंट्रोल करता है और दिल को स्वस्थ रखता है
✔ इसमें पोटैशियम (Potassium) होता है, जो गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। ✔ इससे हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension) और प्रीक्लेम्पसिया जैसी समस्याओं से बचाव होता है।
6. इम्यूनिटी को मजबूत करता है और शरीर को ऊर्जावान बनाता है
✔ बाकला में मौजूद विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाते हैं। ✔ यह गर्भावस्था के दौरान संक्रमण और कमजोरी से बचाने में मदद करता है।
7. गर्भकालीन मधुमेह (Gestational Diabetes) को नियंत्रित करता है
✔ बाकला का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low GI) कम होता है, जिससे यह ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। ✔ गर्भावस्था में डायबिटीज (Gestational Diabetes) होने की संभावना को कम करता है।
गर्भावस्था में बाकला (Broad Beans) कैसे खाएं?
🔹 100-150 ग्राम बाकला रोजाना खाने से पर्याप्त पोषण मिलता है। 🔹 इसे हल्का उबालकर या भूनकर खा सकते हैं ताकि पोषक तत्व सुरक्षित रहें। 🔹 सब्जी, पराठे, दाल, सलाद या सूप में मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं।
गर्भावस्था में बाकला खाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
✅ सावधानियाँ: ✔ यदि आपको G6PD एंजाइम की कमी (G6PD Deficiency) है, तो डॉक्टर की सलाह के बिना बाकला न खाएं, क्योंकि इससे एलर्जी हो सकती है। ✔ अधिक मात्रा में खाने से गैस, पेट फूलना और अपच हो सकता है, इसलिए संतुलित मात्रा में ही सेवन करें।
क्या गर्भवती महिलाओं को बाकला खाना चाहिए? (Final Verdict)
✔ हाँ! गर्भवती महिलाओं के लिए बाकला (Broad Beans / Fava Beans) एक बेहतरीन पोषण स्रोत है। ✔ यह आयरन, फोलेट, फाइबर, कैल्शियम, पोटैशियम और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, जो गर्भ में शिशु के विकास और माँ के स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। ✔ लेकिन अगर आपको एलर्जी या पाचन संबंधी समस्या होती है, तो डॉक्टर से सलाह लेना बेहतर रहेगा।
निष्कर्ष
गर्भावस्था में स्वस्थ और संतुलित आहार बहुत ज़रूरी होता है। बाकला (Broad Beans / Fava Beans) एक पौष्टिक और सेहतमंद सब्जी है, जो माँ और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद है। अगर इसे सही मात्रा में खाया जाए, तो यह गर्भ में शिशु के मस्तिष्क, हड्डियों, पाचन तंत्र और इम्यून सिस्टम के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
Q1: क्या गर्भवती महिलाओं को बाकला खाना सुरक्षित है?
✔ हाँ, बाकला (Broad Beans / Fava Beans) गर्भावस्था में पोषण का बेहतरीन स्रोत है, लेकिन यदि आपको G6PD एंजाइम की कमी है, तो इसे खाने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
Q2: गर्भावस्था में बाकला खाने का सही तरीका क्या है?
✔ इसे हल्का उबालकर, भूनकर या सब्जी के रूप में खाएं। 100-150 ग्राम प्रति दिन सुरक्षित मात्रा है।
Q3: बाकला में कौन-कौन से पोषक तत्व होते हैं?
✔ इसमें आयरन, फोलेट, फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन C और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो माँ और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद हैं।
Q4: क्या बाकला खाने से गर्भावस्था में डायबिटीज कंट्रोल होती है?
✔ हाँ, बाकला का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low GI) कम होता है, जिससे ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है और गर्भकालीन मधुमेह (Gestational Diabetes) से बचाव होता है।
Q5: गर्भावस्था में बाकला खाने के कोई नुकसान भी हैं?
✔ अधिक मात्रा में खाने से गैस, पेट फूलना या अपच हो सकता है, इसलिए इसे संतुलित मात्रा में ही खाएं।
Pregnancy is a crucial time, and the right nutrition is essential for both the mother and the baby. One such beneficial food is dates (खजूर). Dates are packed with essential vitamins and minerals that support a healthy pregnancy. But, Dates during pregnancy: When and how much to eat?
गर्भावस्था के दौरान सही आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है, और खजूर (Dates) एक बेहतरीन विकल्प है। खजूर में आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम, फाइबर और कई जरूरी विटामिन्स होते हैं, जो माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। तो, गर्भावस्था में खजूर खाने के फायदे क्या होते हैं? खजूर कब से खाएं और कितनी मात्रा में खाएं?
गर्भावस्था में खजूर खाने के फायदे:
खजूर में आयरन की भरपूर मात्रा होती है, जो गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (Anemia) को रोकने में मदद करती है।
खजूर से एनर्जी मिलती है, जो पूरे दिन की सक्रियता और सेहत को बनाए रखने में सहायक है।
खजूर में पोटेशियम और फाइबर होते हैं, जो पाचन को सुधारते हैं और कब्ज की समस्या को दूर करते हैं।
यह प्रेग्नेंसी के दौरान माँ और बच्चे के लिए महत्वपूर्ण पोषण प्रदान करता है, जिससे विकास में मदद मिलती है।
खजूर कब से खाएं और कितना खाएं? गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे तिमाही में खजूर का सेवन शुरू किया जा सकता है। आमतौर पर 1-2 खजूर एक दिन में खाना पर्याप्त होता है। ज्यादा खजूर खाने से पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए सीमित मात्रा में ही इसका सेवन करें।
अधिक जानकारी के लिए: गर्भावस्था में खजूर खाने के फायदे, कब से खाएं और कितना खाएं, इस बारे में पूरी जानकारी के लिए हमारा यूट्यूब वीडियो देखें, जो नीचे दिया गया है।
Significance of Basant Panchami for Pregnant Women – 3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के अवसर पर माँ सरस्वती की पूजा करना विशेष शुभ माना जाता है। गर्भवती महिला यदि इस दिन माँ सरस्वती को भोग लगाती हैं और उनकी आराधना करती हैं, तो इससे गर्भ में पल रहे शिशु को निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं:
बुद्धिमत्ता और विद्या का आशीर्वाद: माँ सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं। उनकी पूजा से गर्भ में पल रहे शिशु को ज्ञान, बुद्धि और विवेक का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
संगीत और कला का वरदान: अगर माँ सरस्वती को संगीत और कला का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है, तो शिशु में कला और संगीत के गुणों का विकास हो सकता है।
आध्यात्मिक शांति: माँ सरस्वती की पूजा से गर्भवती महिला और शिशु दोनों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है, जिससे गर्भकाल के दौरान सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
माँ और शिशु का स्वास्थ्य: शुभ दिन पर देवी की आराधना करने से माँ और गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
माँ के गुणों का प्रभाव: गर्भवती महिला के द्वारा सरस्वती वंदना और पूजा करने से शिशु के व्यक्तित्व पर सकारात्मक गुणों का प्रभाव पड़ता है।
वाणी और अभिव्यक्ति का विकास: माँ सरस्वती वाणी की देवी हैं। उनकी पूजा से शिशु को अच्छी वाणी और अभिव्यक्ति का आशीर्वाद मिल सकता है।
गर्भवती महिला को इस दिन माँ सरस्वती को सफेद फूल, मिष्ठान्न (जैसे खीर या मालपुआ), और पीले वस्त्र अर्पित करने चाहिए। साथ ही माँ सरस्वती के मंत्रों का जाप भी शिशु पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
गर्भ में बच्चा स्वस्थ है या नहीं, यह जानने के लिए कुछ सामान्य संकेत हैं जिनसे आप अपनी गर्भावस्था की प्रगति को समझ सकती हैं। ये संकेत सामान्य रूप से स्वास्थ्यप्रद गर्भावस्था के संकेत माने जाते हैं:
1. सामान्य भ्रूण की गतिविधि (किक्स और मूवमेंट्स):
अगर गर्भ में बच्चा नियमित रूप से हिलता-डुलता है और उसके किक्स महसूस होते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि बच्चा स्वस्थ है। आमतौर पर, 18 से 24 सप्ताह के बीच भ्रूण की गतिविधियां महसूस होने लगती हैं।
2. सही वजन का बढ़ना:
माँ का वजन गर्भावस्था के दौरान धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए। यह संकेत है कि बच्चा सही तरीके से विकसित हो रहा है। वजन का अत्यधिक या बहुत कम बढ़ना चिंता का विषय हो सकता है।
3. भ्रूण की दिल की धड़कन:
भ्रूण की दिल की धड़कन (120-160 बीट्स प्रति मिनट) सामान्य होनी चाहिए। अल्ट्रासाउंड या डॉक्टर की जांच में यह सुनिश्चित किया जाता है।
4. संतुलित माँ का स्वास्थ्य:
यदि माँ को अत्यधिक थकान, चक्कर आना या कोई अन्य असामान्य समस्या महसूस नहीं होती और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है, तो यह बच्चे के स्वस्थ होने का संकेत हो सकता है।
5. सामान्य अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट्स:
नियमित अल्ट्रासाउंड चेकअप में अगर बच्चा सही तरीके से विकसित हो रहा है और उसकी संरचना सामान्य है, तो यह एक अच्छा संकेत है।
6. माँ के शरीर में पोषण की स्थिति:
माँ का सही आहार और पोषण बच्चे के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करता है। अगर माँ सही समय पर खा-पी रही हैं और कमजोरी महसूस नहीं कर रही हैं, तो बच्चा स्वस्थ होने की संभावना अधिक होती है।
7. प्लेसेंटा और एमनियोटिक फ्लूड का स्तर:
प्लेसेंटा की स्थिति और एमनियोटिक फ्लूड का सामान्य स्तर बच्चे के विकास में अहम भूमिका निभाता है। अल्ट्रासाउंड के दौरान इसकी जांच की जाती है।
अगर किसी प्रकार की असामान्यता महसूस हो, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। गर्भावस्था के दौरान नियमित चेकअप और डॉक्टर की सलाह का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
Pregnancy symptoms boy or girl – गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एक खूबसूरत और अनूठा चरण होता है। इस दौरान महिला का शरीर कई शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरता है। इनमें से एक सामान्य बदलाव है अधिक नींद आना। लेकिन भारतीय संस्कृति में यह अक्सर चर्चा का विषय बन जाता है कि गर्भावस्था में आने वाले लक्षणों से बच्चे का लिंग (gender of the baby) पता लगाया जा सकता है।
क्या यह सच है? आइए, इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें।
गर्भावस्था में ज्यादा नींद आने के कारण
गर्भावस्था में अधिक नींद आना पूरी तरह से स्वाभाविक है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे:
प्रोजेस्टेरोन हार्मोन (Progesterone Hormone) का बढ़ना: गर्भावस्था के दौरान प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो गर्भवती महिला को आराम महसूस कराने और अधिक नींद लाने में भूमिका निभाता है।
ऊर्जा की अधिक खपत (Energy Utilization): शिशु के विकास के लिए मां का शरीर अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करता है, जिससे थकान महसूस होती है और नींद की जरूरत बढ़ जाती है।
ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर में बदलाव (Fluctuations in Blood Pressure and Blood Sugar): गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर के स्तर में बदलाव होता है, जो अक्सर कमजोरी और नींद का कारण बनता है।
शारीरिक और मानसिक थकावट (Physical and Mental Fatigue): गर्भावस्था में बढ़ते वजन और मानसिक तनाव से शरीर को अधिक आराम की आवश्यकता होती है।
क्या ज्यादा नींद आना बच्चे के लिंग का संकेत है?
भारतीय समाज में गर्भावस्था के दौरान शारीरिक लक्षणों को देखकर बच्चे के लिंग का अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है। हालांकि, यह केवल धारणाएं और कयास हैं।
लोकप्रिय मान्यताएं (Popular Beliefs)
अगर लड़का होने वाला है (Expecting a Baby Boy):
माना जाता है कि अगर महिला को बहुत ज्यादा नींद आती है और वह हमेशा थकावट महसूस करती है, तो लड़का होने की संभावना होती है।
मीठा खाने की अधिक इच्छा (Craving for Sweets) लड़के का संकेत माना जाता है।
अगर लड़की होने वाली है (Expecting a Baby Girl):
कहा जाता है कि यदि महिला ज्यादा सक्रिय रहती है और उसे कम नींद आती है, तो लड़की होने की संभावना होती है।
खट्टा खाने की इच्छा (Craving for Sour Foods) और त्वचा पर चमक (Glowing Skin) लड़की का संकेत मानी जाती है।
विज्ञान क्या कहता है? (Scientific Perspective)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गर्भावस्था के लक्षणों और बच्चे के लिंग के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। यह सिर्फ कयास हैं और इनका कोई चिकित्सा आधार नहीं है।
बच्चे का लिंग केवल अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) या बच्चे के जन्म के समय ही सही रूप से पता लगाया जा सकता है। साथ ही, भारत में लिंग निर्धारण (Gender Determination) कानूनी रूप से प्रतिबंधित है। इसलिए इन मान्यताओं पर भरोसा करने की बजाय गर्भावस्था का ध्यानपूर्वक आनंद लेना ज्यादा जरूरी है।
गर्भावस्था के दौरान सेहतमंद रहने के सुझाव (Tips for a Healthy Pregnancy)
भरपूर नींद लें (Get Enough Sleep): यदि आपको ज्यादा नींद आ रही है, तो इसे नजरअंदाज न करें। यह आपके और आपके शिशु के लिए फायदेमंद है।
संतुलित आहार लें (Eat a Balanced Diet): पौष्टिक आहार, जिसमें फल, सब्जियां, प्रोटीन और विटामिन शामिल हों, आपके और बच्चे के विकास के लिए आवश्यक है।
हल्की फिजिकल एक्टिविटी करें (Engage in Light Physical Activity): डॉक्टर की सलाह लेकर हल्की एक्सरसाइज, जैसे वॉकिंग या प्रेग्नेंसी योगा करें।
तनाव मुक्त रहें (Stay Stress-Free): ध्यान (Meditation) और गहरी सांसों की एक्सरसाइज तनाव को कम करने में मददगार हो सकती हैं।
डॉक्टर की सलाह लें (Consult Your Doctor): अपने लक्षणों के बारे में डॉक्टर से खुलकर बात करें और उनकी सलाह का पालन करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
गर्भावस्था में ज्यादा नींद आना सामान्य है और यह बच्चे के लिंग से संबंधित नहीं है। यह शरीर में होने वाले हार्मोनल और शारीरिक बदलावों का हिस्सा है। लड़का होगा या लड़की, यह जानने की उत्सुकता स्वाभाविक है, लेकिन इन मान्यताओं पर निर्भर न करें।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप इस खूबसूरत समय का आनंद लें और अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखें। आपका स्वस्थ रहना आपके आने वाले बच्चे के लिए भी जरूरी है।
गर्भावस्था एक ऐसा समय है जब महिलाओं को अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इस दौरान खाए जाने वाले हर भोजन का असर न केवल मां पर बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। ऐसे में अक्सर यह सवाल उठता है कि कौन-कौन से खाद्य पदार्थ सुरक्षित हैं और कौन से नहीं। बथुआ (Chenopodium album), एक पौष्टिक हरी पत्तेदार सब्जी है, जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन सुरक्षित है या नहीं, यह समझना जरूरी है।
बथुआ के पोषक तत्व
बथुआ में कई पोषक तत्व होते हैं, जो इसे पौष्टिक बनाते हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित पोषक तत्व पाए जाते हैं:
आयरन (Iron): खून की कमी दूर करने में सहायक।
कैल्शियम (Calcium): हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने में मदद करता है।
विटामिन A: आंखों की रोशनी और त्वचा के लिए अच्छा।
विटामिन C: इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
फाइबर (Fiber): पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
प्रोटीन (Protein): शरीर के विकास और मरम्मत के लिए आवश्यक।
इन पोषक तत्वों के कारण बथुआ को स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है।
गर्भावस्था में बथुआ का सेवन: फायदे
गर्भावस्था में बथुआ खाने के कई फायदे हो सकते हैं, लेकिन इसे सही मात्रा में और सावधानी से सेवन करना चाहिए। आइए इसके कुछ संभावित फायदों को समझते हैं:
पाचन में सुधार बथुआ फाइबर से भरपूर होता है, जो कब्ज को दूर करने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान कब्ज एक सामान्य समस्या होती है, और बथुआ इसे कम करने में सहायक हो सकता है।
आयरन की पूर्ति बथुआ आयरन का एक अच्छा स्रोत है। गर्भवती महिलाओं को आयरन की अधिक जरूरत होती है, क्योंकि यह खून की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है और एनीमिया से बचाता है।
शरीर को डिटॉक्स करना बथुआ का सेवन शरीर से टॉक्सिन्स निकालने में मदद कर सकता है। यह लिवर को स्वस्थ रखने और संक्रमण से बचाने में सहायक है।
इम्यूनिटी को मजबूत बनाना बथुआ में विटामिन C होता है, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। गर्भावस्था में इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, और यह विटामिन संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
हड्डियों को मजबूत बनाना बथुआ में कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज पाए जाते हैं, जो हड्डियों और दांतों को मजबूत करने में मदद करते हैं। यह न केवल मां के लिए बल्कि गर्भ में बच्चे के विकास के लिए भी जरूरी है।
गर्भावस्था में बथुआ खाने से जुड़ी सावधानियां
हालांकि बथुआ पोषक तत्वों से भरपूर है, लेकिन गर्भावस्था में इसे खाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:
अत्यधिक सेवन से बचें बथुआ में ऑक्सालिक एसिड और नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है। यदि इसे ज्यादा खाया जाए, तो यह किडनी पर असर डाल सकता है। गर्भवती महिलाओं को इसका सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए।
कच्चे बथुआ से परहेज करें कच्चे बथुआ में टॉक्सिन्स हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसे हमेशा अच्छे से पकाकर ही खाना चाहिए।
गर्भपात का खतरा बथुआ का अत्यधिक सेवन गर्भाशय को उत्तेजित कर सकता है, जिससे गर्भपात या समय से पहले प्रसव का खतरा हो सकता है। इसलिए इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करें।
एलर्जी की संभावना कुछ लोगों को बथुआ से एलर्जी हो सकती है। यदि आपको इसे खाने के बाद किसी भी प्रकार की एलर्जी जैसे खुजली, त्वचा पर लाल चकत्ते या सांस लेने में दिक्कत हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
फार्मलिन और पेस्टिसाइड्स बाजार में मिलने वाले बथुआ पर कीटनाशक या रसायन हो सकते हैं। इसे हमेशा अच्छे से धोकर और उबालकर ही खाएं।
बथुआ खाने का सही तरीका
गर्भावस्था में बथुआ का सेवन करना चाहते हैं तो इसे निम्नलिखित तरीकों से खा सकते हैं:
सूप बथुआ का सूप पौष्टिक और पचने में आसान होता है। यह ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने में मदद करता है।
पराठा बथुआ पराठा बनाकर खाया जा सकता है। इसे आटे में मिलाकर गूंथ लें और तवे पर सेंक लें। यह स्वादिष्ट और सेहतमंद होता है।
सब्जी बथुआ को आलू या पनीर के साथ मिलाकर सब्जी के रूप में खाया जा सकता है।
रायता बथुआ को उबालकर और दही में मिलाकर स्वादिष्ट रायता बनाया जा सकता है। यह पाचन में भी मदद करता है।
दाल में मिलाकर बथुआ को दाल में मिलाकर पकाया जा सकता है, जिससे दाल का पोषण बढ़ता है।
डॉक्टर से परामर्श क्यों जरूरी है?
गर्भावस्था में किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है। हर महिला का शरीर अलग होता है, और एक ही भोजन हर किसी के लिए लाभकारी नहीं हो सकता। यदि आपको पहले से कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो बथुआ खाने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
निष्कर्ष
गर्भावस्था में बथुआ का सेवन फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इसे सीमित मात्रा में और सही तरीके से खाना चाहिए। बथुआ के पोषक तत्व मां और बच्चे दोनों के लिए अच्छे हो सकते हैं, लेकिन इसकी अधिकता से बचना जरूरी है। हमेशा इसे अच्छी तरह से धोकर और पकाकर खाएं। यदि आपको इसे खाने के बाद कोई असुविधा महसूस होती है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इस दौरान संतुलित आहार और सही खान-पान के साथ-साथ नियमित जांच भी जरूरी है ताकि आप और आपका बच्चा स्वस्थ रहें
गर्भावस्था का छठा महीना प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही का आखिरी महीना होता है। यानी की अब धीरे धीरे समय और तेजी से आगे निकलने लगता है साथ ही महिला को अब डिलीवरी के लिए अपने शरीर को तैयार करने की जरुरत होती है। इसके अलावा एक और बात जिसका ध्यान महिला को बहुत ज्यादा रखने की जरुरत होती है वो है की महिला को अपनी डाइट को पहले से और भी बेहतर करना चाहिए।
प्रेग्नेंट महिला जितना अच्छे से अपनी डाइट का ध्यान रखेगी उतना ही शिशु को बेहतर पोषण मिलेगा जिससे गर्भ में शिशु का विकास अच्छे से होगा। इसके अलावा जन्म के समय शिशु को वजन में कमी जैसी समस्या से भी बचे रहने में मदद मिलेगी। तो आइये अब प्रेगनेंसी के छठे महीने में महिला के शरीर में क्या लक्षण महसूस होते हैं, महिला की डाइट कैसी होनी चाहिए, गर्भवती महिला को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, आदि के बारे में जानते हैं।
प्रेगनेंसी के छठे महीने के लक्षण
गर्भावस्था के पूरे नौ महीने महिला के शरीर में बहुत से लक्षण महसूस होते हैं। ऐसा जरुरी नहीं है की हर गर्भवती महिला के शरीर में एक ही तरह के लक्षण दिखाई दे बल्कि यह पूरी तरह से महिला के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। ऐसे में हर गर्भवती महिला के शरीर में अलग अलग लक्षण महसूस हो सकते हैं। तो आइये अब जानते हैं की प्रेग्नेंट महिला के शरीर में कौन-कौन से लक्षण महसूस हो सकते हैं।
पाचन से जुडी समस्या
प्रेगनेंसी के छठे महीने में गर्भवती महिला का पेट आगे की तरफ निकला हुआ दिखाई देने लगता है। साथ ही गर्भाशय का आकार बढ़ने के साथ पेट के निचले हिस्से पर भी दबाव बढ़ जाता है। जिसकी वजह से पाचन क्रिया थोड़ा धीमे काम करने लगती है। ऐसे में महिला को खाना हज़म करने में दिक्कत हो सकती है जिसकी वजह से कब्ज़, सीने में जलन, एसिडिटी जैसी समस्या भी महिला को अधिक हो सकती है।
पीठ में दर्द
पेट का आकार बढ़ने के कारण पीठ की मांसपेशियों में भी खिंचाव थोड़ा बढ़ जाता है। जिसकी वजह से महिला को पीठ में दर्द की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। जिन महिलाओं का वजह ज्यादा होता है उन्हें यह समस्या अधिक हो सकती है।
सूजन
वजन बढ़ने की वजह से पेट के निचले हिस्से से लेकर पैरों तक दबाव अधिक बढ़ जाता है। जिसकी वजह से यदि महिला बहुत देर तक पैरों को लटककर बैठती है तो इसकी वजह से ब्लड फ्लो थोड़ा धीमे हो जाता है साथ ही यदि महिला लम्बे समय तक एक ही जगह खड़ी रहती है तो इसकी वजह से पैरों पर अधिक दबाव पड़ता है जिसकी वजह से महिला को पैरों में दर्द व् सूजन की समस्या हो सकती है। पैरों के साथ कुछ महिलाओं को हाथों व् चेहरे पर सूजन भी हो सकती है ऐसे में इस समस्या के ज्यादा होने पर महिला को इसे अनदेखा न करते हुए तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।
थकावट महसूस होना
इस दौरान महिला ज्यादा थकावट व् कमजोरी भी महसूस कर सकती है। खासकर काम करते समय महिला जल्दी ही थक जाती है ऐसे में महिला को आराम आराम से ही काम करना चाहिए और अपने खान पान का ध्यान रखना चाहिए ताकि महिला को इस परेशानी से बचे रहने में मदद मिल सकें।
भूख में बढ़ोतरी
पहले की अपेक्षा छठे महीने में महिला को ज्यादा भूख लग सकती है लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है की महिला जरुरत से ज्यादा खाना शुरू कर दे। साथ ही महिला को थोड़ा थोड़ा करके खाना चाहिए ताकि महिला को पेट से सम्बंधित परेशानियों से बचे रहने में मदद मिल सके।
प्रेगनेंसी के छठे महीने में बरतें यह सावधानियां
हर महिला यही चाहती है की उसे प्रेगनेंसी के दौरान किसी भी तरह की समस्या नहीं हो ऐसे में महिला के लिए जरुरी है की महिला प्रेगनेंसी के दौरान पूरी सावधानी बरतें। तो आइये अब जानते हैं की प्रेगनेंसी के छठे महीने में महिला को क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
महिला को पेट के बल नहीं सोना चाहिए।
एक ही बार में पेट भरकर नहीं खाना चाहिए थोड़ा थोड़ा करके खाना चाहिए ताकि महिला की पाचन क्रिया को दुरुस्त रहने में मदद मिल सकें।
पेट के बल काम नहीं करना चाहिए।
ज्यादा देर एक ही जगह खड़े रहकर काम नहीं करना चाहिए।
यदि काम करने में कोई दिक्कत हो रही है तो उस काम को न करें।
स्ट्रेस नहीं लें।
सम्बन्ध बनाते समय सावधानी बरतें।
शिशु गर्भ में हलचल कर रहा है या नहीं इस बात का ध्यान रखें।
ज्यादा भागादौड़ी नहीं करें।
तेलीय व् मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करें।
कैफीन का सेवन अधिक नहीं करें।
ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ा बहुत योगा व् मैडिटेशन जरूर करें।
बिना डॉक्टरी सलाह के किसी भी तरह की दवाई का सेवन नहीं करें।
यदि शरीर में कोई भी असहज लक्षण महसूस होता है या कोई दिक्कत ज्यादा होती है तो देरी न करते हुए तुरंत डॉक्टर से मिलें।
तो यह है प्रेगनेंसी के छठे महीने से जुड़े टिप्स, यदि आप भी प्रेग्नेंट हैं तो आपको भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए और डॉक्टर जो आपको करने या न करने की सलाह देता है उसके प्रति ध्यान रखें। ताकि आपकी प्रेगनेंसी को आसान बनाने में मदद मिल सके साथ ही माँ व बच्चे दोनों को स्वस्थ रहने में मदद मिल सकें।
महिला की जिंदगी में माँ बनने का अनुभव उसके सबसे यादगार व् खास पलों में से एक होता है। प्रेगनेंसी के नौ महीने में जहां महिला को नए नए अनुभव महसूस होते हैं तो वहीँ महिला के लिए बहुत जरुरी होता है की महिला बहुत सी सावधानियों का भी ध्यान रखें। क्योंकि जितना महिला अपना ध्यान रखती है अपनी केयर करती है उतना ही महिला को स्वस्थ रहने और शिशु के बेहतर विकास में मदद मिलती है।
प्रेगनेंसी का पांचवां महीना महिला के लिए बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान महिला गर्भ में पल रहे अपने शिशु को महसूस करती है। इस दौरान शिशु गर्भ में हलचल करना शुरू कर देता है तो वहीँ महिला का पेट भी अब बाहर की तरफ दिखना भी शुरू हो जाता है। तो आइये आगे इस आर्टिकल में इन सभी चीजों के बारे में विस्तार से जानते हैं। यदि आप भी प्रेग्नेंट हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए भी मददगार हो सकता है।
गर्भावस्था के पांचवें महीने के लक्षण
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में गर्भ में शिशु का विकास और तेजी से होने लगता हैं। ऐसे में हो सकता है महिला की परेशानियां थोड़ी बढ़ जाएँ। लेकिन महिला के लिए इस बात का ध्यान रखना जरुरी होता है कि किसी भी परेशानी के अधिक होने पर महिला उसे नज़रअंदाज़ न करते हुए तुरंत डॉक्टर से मिलें। तो आइये अब जानते हैं कि प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला को शरीर में कौन- कौन से लक्षण महसूस हो सकते हैं।
कमजोरी महसूस होना
गर्भावस्था के पांचने महीने कमजोरी, थकावट, घबराहट जैसी समस्या होना सामान्य बात होती है। क्योंकि इस दौरान गर्भ में शिशु का तेजी से होता है, शिशु का वजन बढ़ जाता है, गर्भाशय का आकार बढ़ता है ऐसे में महिला को यह समस्या होना आम बात होती है।
पीठ में दर्द
गर्भ में शिशु का वजन बढ़ने के कारण महिला को पेट के निचले हिस्से में हल्का दर्द रहने के साथ पीठ में दर्द जैसी समस्या हो सकती है। खासकर जब महिला गकत तरीके से उठती बैठती है तो महिला कि परेशानी और भी बढ़ सकती है।
सांस लेने के दिक्कत
कुछ महिलाओं को प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में सांस फूलने जैसी समस्या भी अधिक हो सकती है। और इसका कारण शरीर का वजन बढ़ना, शरीर में प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन का उत्पादन बढ़ना आदि हो सकता है। और जिन महिलाओं का वजन पहले से ही अधिक होता है उन्हें यह दिक्कत ज्यादा हो सकती है।
सफ़ेद पानी की समस्या
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव तेहि से हो रहे होते हैं। जिसकी वजह से महिला को प्राइवेट पार्ट से सफ़ेद पानी निकलता हुआ महसूस होता है। ध्यान रखें यदि सफ़ेद पानी अधिक मात्रा में निकलें तो एक बार डॉक्टर से जरूर मिलें।
पाचन क्रिया से जुडी समस्या
गर्भ में शिशु का वजन बढ़ने के कारण पेट के निचले हिस्से में दबाव पड़ जाता है। जिसकी वजह से पाचन क्रिया पर असर पड़ता है। और महिला को कब्ज़, एसिडिटी, जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
मसूड़े से खून आना
कुछ महिलाओं को प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में मसूड़ों के संवेदनशील होने कि समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है। जिसकी वजह से मसूड़ों से खून आने जैसी समस्या भी महिला को हो सकती है।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में शिशु का विकास
गर्भावस्था का समय जैसे जैसे आगे बढ़ता है वैसे वैसे गर्भ में शिशु का विकास भी और तेजी से होने लगता है। जैसे कि शिशु वजन इस दौरान 500 ग्राम के आस पास हो जाता है। साथ ही शिशु की लम्बाई भी छह से दस इंच तक हो जाती है। इसके अलावा शिशु का विकास पूरी तरह से गर्भवती महिला की जीवनशैली पर निर्भर करता है। क्योंकि जितनी अच्छी महिला की जीवनशैली होगा उतना ही शिशु का विकास बेहतर होता है।
इस दौरान शिशु के मसूड़ों के अंदर दांत बनने शुरू हो जाते है।
शिशु के चेहरा पूरी तरह से दिखाई देने लग जाता है।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में शिशु अंगड़ाई और जम्हाई लेना शुरू कर देता है।
शिशु की भोएं, पलकें, आँखे, कान और नाखून बन जाते हैं।
शिशु का दिमागी विकास होना शुरू हो जाता है।
गर्भ में शिशु अपनी आंखें थोड़ी सी खोल सकता है।
शिशु की हड्डियों और मांसपेशियों का विकास बढ़ना शुरू हो जाता है।
गर्भ में शिशु की स्किन पर ब्लड वेसल्स दिखाई देने शुरू हो जाते हैं।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में गर्भ में शिशु हलचल करने यानी की हाथ पैर घूमाने शुरू कर देता है।
क्या गर्भ में शिशु की हलचल महिला को महसूस होती है?
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने के आखिर तक गर्भ में शिशु की मूवमेंट शुरू हो जाती है। जबकि गर्भ में शिशु घूमने तो पहले से लग जाता है लेकिन शिशु का आकार छोटा होने की वजह से महिला को यह महसूस नहीं होती है। और जिन महिलाओं की पहली प्रेगनेंसी होती है उन्हें शिशु की मूवमेंट समझने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है।
जबकि दूसरी प्रेगनेंसी वाली महिलाएं शिशु की हलचल को आसानी से समझ लेती है। इसके अलावा पहली बार गर्भवती होने वाली महिलाएं भी धीरे धीरे शिशु की हलचल को समझ लेती है। और जैसे जैसे शिशु का विकास बढ़ जाता है वैसे वैसे शिशु की हलचल भी अधिक होने लगती है। और धीरे धीरे महिला को दिन भर में ज्यादा बार शिशु की हलचल महसूस होने लगती है।
क्या प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला सम्बन्ध बना सकती है?
गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं होती है की उस समय महिला कोई काम नहीं कर सकती है या फिर सम्बन्ध नहीं बना सकती है। बल्कि यह पूरी तरह से महिला के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि गर्भवती महिला पूरी तरह स्वस्थ है हष्ट पुष्ट है, महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से कोई दिक्कत नहीं है तो स्वस्थ प्रेगनेंसी के दौरान महिला का सम्बन्ध बनाना बिल्कुल सेफ होता है।
इसके अलावा सम्बन्ध बनाते समय दोनों पार्टनर्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की महिला को किसी भी तरह की दिक्कत न हो, पेट पर दबाव नहीं पड़े, ज्यादा तेजी न करें, कुछ अलग या नया ट्राई न करें, आदि। क्योंकि यदि आप किसी तरह की लापरवाही करते हैं तो माँ या बच्चे को दिक्कत हो सकती है। ऐसे में सम्बन्ध बनाते समय पूरी सावधानी का ध्यान रखें।
क्या प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में शरीर में कोई बदलाव आता है?
जी हाँ, प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला के शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं जो बाहरी रूप से भी महिला में दिखाई देते हैं। जैसे की:
महिला के यूटेरस का आकार बढ़ जाता है जिसकी वजह से महिला का पेट बाहर की और निकलने लगता है। साथ ही समय के साथ यह और ज्यादा बाहर निकलने लगता है।
गर्भवती महिला का वजन प्रेगनेंसी का समय आगे बढ़ने के साथ और भी बढ़ने लगता है।
पेट का आकार बढ़ने के कारण पेट पर खिंचाव के निशान या स्ट्रेचमार्क आपको दिखाई दे सकते हैं जरुरी नहीं है की ऐसा हर महिला के साथ हो कुछ महिलाएं जो प्रेगनेंसी के दौरान अपने पेट की केयर का ध्यान रखती है उन्हें यह समस्या नहीं होती है।
महिला की स्किन व् बालों में भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में अधिकतर गर्भवती महिलाओं को भूख भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि गर्भ में शिशु किम जरूरतें भी बढ़ जाती है।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में क्या खाएं?
गर्भावस्था में खान पान का बहुत अधिक महत्व होता है क्योंकि जितना बेहतर महिला की डाइट होती है उतना ही महिला के शरीर को पोषण मिलता है। जिससे महिला के शरीर को प्रेगनेंसी के दौरान फिट रहने में मदद मिलती है। इसके साथ ही जितना गर्भवती महिला स्वस्थ रहती है उतना ही गर्भ में पल रहे शिशु के बेहतर विकास में मदद मिलती है।
इसके अलावा महिला को डिलीवरी के समय आने वाली दिक्कतों से भी बचे रहने में मदद मिलती है। ऐसे में महिला को अपनी डाइट का अच्छे से ध्यान रखना चाहिए और किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए। तो आइये अब जानते हैं महिला को अपनी डाइट में किन- किन चीजों को शामिल करना चाहिए।
महिला को शरीर में पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए इसके लिए महिला को दिन भर में आठ से दस गिलास पानी जरूर पीना चाहिए।
गर्भवती महिला को दूध दही का भरपूर सेवन करना चाहिए।
मौसमी फल सब्जियों का सेवन भरपूर करना चाहिए।
दालों को अपनी डाइट का अहम हिस्सा बनाना चाहिए।
अंडे व् नॉन वेज यदि गर्भवती महिला खा लेती है तो महिला को उनका सेवन भी भरपूर करना चाहिए।
साबुत अनाज आदि का भरपूर सेवन करना चाहिए।
खान पान का ध्यान रखने के साथ महिला को खाने के तरीके का भी ध्यान रखना चाहिए जैसे की महिला को एक ही बार में खाना खाने की बजाय थोड़ा थोड़ा करके खाना चाहिए। महिला को अच्छे से चबाकर खाना खाना चाहिए।
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में किन चीजों से परहेज करें?
गर्भावस्था के पांचवें महीने में महिला को कुछ चीजों से परहेज भी करना चाहिए ताकि माँ या शिशु दोनों की सेहत को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हो। जैसे की:
महिला को कैफीन का सेवन अधिक नहीं करना चाहिए।
शराब, सिगरेट व् अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
कच्चे अंडे व् नॉन वेज का सेवन नहीं करना चाहिए।
डिब्बाबंद आहार नहीं खाना चाहिए।
बासी व् फ्रिज में रखे ठन्डे खाने से परहेज करना चाहिए।
बिना ढके पड़े खाने को नहीं खाना चाहिए।
बिना धुले फल व् सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
अनानास, कच्चा पपीता आदि के सेवन से बचें।
गर्भावस्था के पांचवें महीने में क्या-क्या सावधानियां बरतें?
प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि गर्भवती महिला या शिशु को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हो। जैसे की:
महिला को पेट के बल नहीं सोना चाहिए।
लम्बे समय तक एक ही जगह खड़े रहने या बैठने से बचना चाहिए।
ज्यादा भागादौड़ी नहीं नहीं करनी चाहिए।
तनाव नहीं लेना चाहिए।
वजन बढ़ रहा है तो वजन को कण्ट्रोल करने के लिए डाइट नहीं करनी चाहिए।
जरुरत से ज्यादा योगा या व्यायाम नहीं करना चाहिए।
जिस काम को करने से महिला के पेट पर जोर पड़ता है तो महिला को उन कामों को नहीं करना चाहिए।
महिला को कुछ भी नेगेटिव नहीं सोचना चाहिए।
डॉक्टर से सही समय पर जांच करवानी चाहिए साथ ही कोई भी दिक्कत होने पर बिना देरी किये डॉक्टर से मिलना चाहिए।
तो यह है प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में महिला को क्या करना चाहिए को क्या नहीं करना चाहिए उससे जुड़े टिप्स, इसके अलावा महिला की डाइट के बारे में भी कुछ जानकारी दी गई है। यदि आप भी प्रेग्नेंट हैं तो आपको भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आपकी प्रेगनेंसी को आसान बनाने में मदद मिल सकें।