गर्भधारण के बाद कैसी होती है लाइफ नौ महीने तक

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प्रेगनेंसी के नौ महीने किसी भी महिला के लिए बहुत खास होते हैं और इस दौरान महिला बहुत से शारीरिक व् मानसिक बदलाव से गुजरती है। और सबसे खास अनुभव तब होता है जब वो गर्भ में शिशु की हलचल को महसूस करने लगती है। लेकिन प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए बहुत जटिल समय भी होता है क्योंकि इस दौरान बॉडी में तेजी से हो रहे हार्मोनल बदलाव के कारण महिला को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा भी जरुरी नहीं होता है की हर गर्भवती महिला को एक जैसी परेशानी हो। यह हर महिला के बॉडी में हो रहे बदलाव पर निर्भर करता है।

जैसे की कुछ महिलाओं को तीन महीने तक उल्टी की समस्या होती है तो कुछ पूरे नौ महीने तक इससे परेशान रहती है, कुछ की भूख बढ़ जाती है तो किसी का खाने का मन नहीं करता है, कुछ को क्रेविंग यानी किसी एक चीज को खाने का मन करता है, तो किसी का हर दिन कुछ चटपटा खाने का मन करता है, पेट में दर्द, मूड में बदलाव, और भी बहुत कुछ महिला को पूरे नौ महीने तक महसूस होता है। और उसके बाद डिलीवरी का समय पास आने पर डिलीवरी से जुडी समस्या की डिलीवरी नार्मल होगी या सिजेरियन। तो आइये अब विस्तार से जानते हैं की प्रेगनेंसी के नौ महीने महिला की लाइफ कैसी होती है ।

प्रेग्नेंट होने की ख़ुशी

पीरियड्स मिस होने के बाद महिला के मन में तरह- तरह की अटकले लगने लगती है की कहीं वो गर्भवती तो नहीं है, और उसके बाद जैसे ही वो टेस्ट करती है और रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। तो यह महिला की प्रेगनेंसी में होने वाला पहला खास अनुभव होता है, जो की केवल यह जानने के बाद ही की वो माँ बनने वाली है उसे मातृत्व का अहसास करवा देता है। प्रग्नेंट होने की ख़ुशी केवल गर्भवती महिला को ही नहीं बल्कि उससे जुड़े हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान ले आती है।

घर में सब देते हैं प्यार

घर में नन्हा मेहमान आने वाला है और वो स्वस्थ और हष्ट पुष्ट हो और गर्भवती महिला भी स्वस्थ रहें इसके लिए घर में मौजूद हर कोई महिला को एक खास केयर देता हैं। उसके खाने का पूरा ध्यान रखा जाता है, या जो महिला अकेली भी रहती है उसे भी फ़ोन पर हर कोई यही बताता है की इस समय उसे अपनी केयर किस तरह करनी चाहिए। तो ऐसे में महिला के लिए प्रेगनेंसी में एन्जॉय करने वाला एक अहसास होता है जहां हर को उसे प्यार और आशीर्वाद देता है।

शरीर में शुरू होते हैं हार्मोनल बदलाव

जैसे ही निषेचन की क्रिया होती है और महिला का गर्भ ठहर जाता है। वैसे ही महिला के शरीर में तेजी से हार्मोनल बदलाव होते हैं और यह महिला को केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी होते हैं। जिसके कारण महिला को बहुत सी शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है।

पहले तीन महीने होते हैं बहुत खास

प्रेगनेंसी के पहले तीन महीने बहुत ही खास होते है, इस दौरान महिला अपना बहुत ज्यादा ध्यान रखती है क्योंकि इस समय की गई थोड़ी सी लापरवाही बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है। इस दौरान महिला का अल्ट्रासॉउन्ड भी होता है जिसमे शिशु की हार्टबीट का पता चलता है, शिशु के अंग विकसित होना शुरू कर देते हैं। और गर्भनाल के द्वारा शिशु को पोषण महिला द्वारा दिया जाता है।

दिखने लगता है पेट

पहले तीन महीने में महिला का पेट नहीं दिखता है, लेकिन चौथे महीने तक आते आते महिला का पेट थोड़ा सा बाहर आ जाता है। और इसका मतलब यह होता है की शिशु का भी थोड़ा विकास हो रहा है उसके बाद जैसे जैसे शिशु का विकास तेजी से होने लगता है। वैसे वैसे महिला का पेट और अधिक दिखने लगता है।

शिशु की होने लगती है हलचल

जो महिला दूसरी बार माँ बन रही होती है उसे शिशु की हलचल का चौथे महीने में ही आभास होने लगता है, लेकिन जो महिला पहली बार माँ बन रही होती है उसे थोड़ा समय लग सकता है। लेकिन पांचवें महीने में महिला अच्छी तरह से इसका अहसास कर सकती है। शुरुआत में शिशु कम हलचल करता है लेकिन प्रसव का समय पास आने तक आप ज्यादा समय और तेजी से शिशु की गर्भ को महसूस करती है।

बढ़ने लगती है दिक्कत

जैसे जैसे महिला का वजन और पेट निकलने लगता है वैसे वैसे महिला को उठने बैठने सोने में परेशानी होने लगती है, शिशु भी ज्यादा हलचल करता है। शिशु का वजन बढ़ने के कारण पेट के निचले हिस्से में दर्द है, बार बार यूरिन पास करने की इच्छा होती है, और भी बहुत सी परेशानियां बढ़ जाती हैं।

डिलीवरी का समय जैसे जैसे आता है पास

नौवें महीने में जब डिलीवरी का समय पास आने लगता है वैसे ही महिला को इस बात को लेकर भी चिंता होने लगती है की उसकी डिलीवरी नार्मल होगी या सिजेरियन। साथ ही इस दौरान वजन बढ़ने और बाहर निकले पेट के कारण उठने बैठने में भी परेशानी होने लगती है। और उसके बाद प्रसव के लक्षण जैसे ही दिखने लगते हैं तो आपको बिना देरी किये हॉस्पिटल जाना चाहिए ta।की आप इन नौ महीनो के इंतज़ार का मीठा फल लेकर आ सकें।

तो यह महिला प्रेग्नेंट महिला के एक से नौ महीने तक का सफर जहां उसे अपना दुगुना ध्यान रखना पड़ता है ताकि गर्भ में पल रहा शिशु भी स्वस्थ रहे और प्रेगनेंसी के दौरान महिला को भी किसी तरह की परेशानी का अनुभव न करना पड़े। प्रेगनेंसी का हर दिन हर पल महिला के लिए नए नए अनुभव से भरा होता है जिसे केवल महिला ही महसूस कर सकती है।

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