प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए अनमोल लम्हा होता है, क्योंकि इस समय में वो ऐसे अनुभव से गुजरती है जिसे वो अकेले ही महसूस कर सकती है, गर्भावस्था के पूरे नौ महीने शरीर में होने वाले बदलाव, शिशु का बढ़ना, उसका प्रतिक्रिया देना, और उसके आने के बाद उसके साथ अपने नए सपनो को संजोना, उसकी ख़ुशी और मुस्कराहट के लिए सब कुछ करना, इसे ही मातृत्व कहते है, और इसका सबसे पहला अहसास तब होता है जब महिला को पहली बार पता चलता है की वो माँ बनने वाली है।
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जैसे ही बच्चा गर्भ में आता है, वो न तो हिलता है, न ही बोलता है, परन्तु माँ को हर पल यही लगता है, की गर्भ में शिशु का विकास कैसे हो रहा होगा, ऐसे ही माँ और शिशु का रिश्ता बनने लगता है, बिना देखें महिला हर पल ये सोचती है की वो ऐसा क्या करें जिससे उसके शिशु को फायदा हो और ऐसा क्या न करें, जिसके कारण उसके शिशु को थोड़ा सा भी नुकसान हो, क्योंकि हर महिला चाहती है, की उसके शिशु हमेशा स्वस्थ रहें, धीरे धीरे दिन जब आगे बढ़ते है, तो महिला का बढ़ता हुआ पेट महिला को यह बताता है की उसका शिशु गर्भ में बढ़ रहा है, और चौथे या पांचवे महीने में बच्चा थोड़ा घूमने फिरने लगता है, उस समय महिला का रिश्ता और भी गहरा होता जाता है।
इन दिनों में शिशु हर समय हरकत नहीं करता है, परन्तु महिला बेसब्री से इंतज़ार करती है है की कब उसका शिशु कुछ हरकत करेगा, इसके बाद आठवे और नौवे महीने में बच्चे बहुत ज्यादा हरकत करते है, तो महिला को लगता है, की पता नहीं ये दिन कैसे बीतेंगे और कब उनका शिशु उनकी गोद में होगा, और जब महिला की डिलीवरी का समय पास आता है, तो उसके बाद जैसे ही शिशु महिला की गोद में आता है, तो उस नन्ही सी जान को देखकर उसे महसूस करके महिला के अंदर अपने आप ही एक भावना आती है की यह शिशु उनके अंदर था और किस तरह से इसका विकास हुआ और आज ये उनके पास है, उसके बाद महिला के लिए दुनिया व्ही थम जाती है, और उसे अपने शिशु के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता है, तो आइये जानते है की महिला को उसे मातृत्व का अहसास कब होता है।
जैसे ही महिला को पता चलता है की वो माँ बनने वाली है:-
जैसे ही महिला का मासिक धर्म आना बंद होता है तो शादी के बाद महिला सबसे पहले ये चेक करती है की कही वो माँ तो नहीं बनने वाली है, और पहली बार हो या दूसरी बार माँ बनने जैसी ख़ुशी कोई नहीं होती है, जैसे ही महिला को पता चलता है की वो माँ बनने वाली है, वैसे ही वो अपने अंदर पल रही नन्ही जान को महसूस करने की कोशिश करती है, और उसे पहली बार मातृत्व का अहसास होता है, और उसे लगता है, की उसकी खुशियों को दुगुना करने वाला मेहमान अब उसके गर्भ में पल रहा है।
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जब बच्चे गर्भ में हरकतें करता है:-
महिला बच्चे द्वारा की जाने वाली हर हरकत को गर्भ में चौथे या पांचवे महीने से महसूस कर सकती है, और बच्चे के घूमने और उसके लात मारने पर महिला को एक अच्छा और अलग अनुभव होता है, शुरुआत में शिशु ज्यादा नहीं घूमता है परन्तु इस पल के लिए महिला इंतज़ार करती है, की कब शिशु घूमेगा, और जैसे ही शिशु कोई हरकत करता है, माँ सोचती है की वो लम्हा बस वहीं ठहर जाएँ, तब भी महिला को अपने मातृत्व का अहसास होता है, लेकिन आखिरी के महीनो में बच्चा अच्छे से घूमता है, और महिला उसका अनुभव बार बार करती है, साथ ही यदि बच्चा घूम रहा हो, तो पिता भी महिला के पेट को हाथ लगाकर इसका अनुभव उठा सकता है।
डिलीवरी का समय नजदीक आने पर:-
प्रेगनेंसी के समय महिला ने चाहे कितनी परेशानी उठाई हो परन्तु महिला को आखिरी के महीने के खत्म होने का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, क्योंकि वो दिन नजदीक आने वाला होता है जिस शिशु को वो सिर्फ अपने अंदर महसूस कर रही थी बस अब कुछ ही पलों में वो शिशु उनकी गोद में आने वाला है, वो चाहती है की जल्दी से वो समय आएं और उनका शिशु उनके हाथों में आएं, कई महिलायें तो नौवे महीने माँ अधिक काम करना शुरू कर देती है जिसके कारण नार्मल डिलीवरी को और शिशु भी ठीक हो।
शिशु को गोद में उठाने पर:-
जैसे ही महिला पहली बार अपने शिशु को उठाती है, तो उसके मन में एक ही बार में बहुत सी उधेड़बुन चलने लग जाती है, एक तो वह यह सोचती है की वो अपने शिहु के लिए सब कुछ अच्छा करेगी, उसकी अच्छे से केयर करेगी, तो दूसरी तरफ उसके मन में डर लगा रहता है की क्या वो अपने बच्चे की अच्छे से केयर कर पाएगी, या नहीं, और भी अपने बच्चे के साथ किस प्रकार अपने लम्हो को कैसे जीएगी, तरह तरह के प्रश्न उसके मन में चलने लगते है, ये सबसे खास लम्हा होता है जब महिला को अपने मातृत्व का अहसास होता है।
महिला जब शिशु को स्तनपान करवाती है:-
महिला को अपने मातृत्व का फिर से अहसास तब होता है, जब वो शिशु को स्तनपान करवाती है, क्योंकि इस समय महिला और शिशु एक दूसरे को और भी करीब से महसूस करते है, और माँ का दूध शिशु के लिए किसी अमृत से कम नहीं होता है, और कई महिलाओ को तो प्रेगनेंसी में ही स्तनों से दूध आना शुरू हो जाता है, तब भी महिला को एक अलग अनुभव होता है, तभी कहा गया है की यदि शिशु के जन्म के एक घंटे के बाद उसे स्तनपान करवा दिया जाता है, तो इसके कारण उसे हर बिमारी से सुरक्षित रहने में मदद मिलती है, साथ ही स्तनपान कराने से केवल शिशु को ही नहीं बल्कि महिला को भी उतना ही फायदा होता है क्योंकि उसे भी बीमारियों से बचाव में मदद मिलती है।
जैसे शिशु थोड़ा बड़ा होने लगता है:-
रात रात भर अपने बच्चे की भूख को लेकर उठना उसकी केयर में अपने आप को भूल जाना भी महिला को मातृत्व का अहसास करवाता है, उसके रोने पर उसकी बात को समझना की उसे क्या चाहिए, एक महिला को बिलकुल बदल देता है, इसके साथ जैसे जैसे शिशु बड़ा होने लगता है, उसके खान पान का ध्यान रखना, उसके उठने से लेकर सोने तक उसकी हर एक चीज को सही करना, और जैसे ही बच्चे पहले बैठे, चलने और फिर बोलने लगता है, यदि वो अपने मुँह से माँ या म म भी करता है तो महिला को अपने मातृत्व का अहसास होता है, क्योंकि उसका शिशु उसे पहले बार माँ कहकर बुलाता है।
महिला को मातृत्व का अहसास और कब कब होता है:-
- जब बच्चा रात को एक बार भी नहीं रोता है, और महिला उठ कर देखती है की कही वो हिल तो नहीं रहा, उसे भूख तो नहीं लगी।
- महिला जब बच्चे को मालिश करती है तो भी माँ और शिशु के बीच का सम्बन्ध गहरा होता है।
- बच्चे को चुप कराने के लिए तरह तरह के मुँह बनाना बिना मतलब की बातें बोलना भी एक अलग अनुभव होता है।
- बच्चे के चलने शुरू करने के बाद उसे बार बार अपनी तरफ बुलाना।
- बच्चे के एक बार माँ बोलने पर उसे बार बारे वही शब्द दोहराने के लिए कहना मातृत्व की पहचान है।
- बच्चे की अलग अलग और प्यारी हरकतों को देखकर महिला मन ही मन मुस्कुराती है तो महिला को अपने मातृत्व का अहसास होता है।
तो ये सब कुछ लम्हे है जो महिला को अहसास दिलाते है की अब वो अकेली नहीं है बल्कि एक शिशु उसके ऊपर पूरी तरह से निर्भर करता है, और माँ भी अपने से पहले सिर्फ अपने बच्चे के बारे में सोचती है, पहले बार माँ बन रही महिला के लिए ये सबसे ख़ास होता है, साथ ही महिला के इन अनुभव के साथ उनका पार्टनर भी इन लम्हो का आनंद उठाता है।