प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए सबसे सुखद और खास अनुभव होता है। क्योंकि यह केवल प्रेगनेंसी में होने वाली परेशानियों से ही नहीं बल्कि बहुत से नए अनुभव से भी भरा होता है। जैसे की पहली बार बच्चे की हार्टबीट को अल्ट्रासाउंड के माध्यम से महसूस करना, बच्चे का विकास किस प्रकार हो रहा है यह जानने की उत्सुकता का होना, शिशु द्वारा गर्भ में हलचल करना, आदि। साथ ही महिला प्रेगनेंसी के दौरान बहुत सी परेशानियों से भी गुजरती है इसीलिए तो कहा जाता है की महिला के लिए किसी शिशु को जन्म देना किसी जंग से कम नहीं होता है, और एक तरह से न केवल महिला एक नन्ही जान को जन्म देती है बल्कि यह महिला के लिए भी उसके दूसरे जन्म की तरह होता है।
लेकिन पहली बार जब महिला गर्भवती होती है तो उसमे एक अलग ही उत्साह के साथ डर भी देखने को मिलता है जबकि महिला जब दूसरी या तीसरी बार प्रेग्नेंट होती है। तो ऐसे में महिला में न तो वो डर दिखाई देता है और उत्सुकता भी पहले के मुकाबले कम हो जाती है। साथ ही पहली बार प्रेगनेंसी के दौरान महिला शिशु के लिए क्या सही है या नहीं इस बारे में जानकारी लेती रहती है। लेकिन जब दूसरी बार महिला इस अनुभव से गुजरती है तो उसे इन सब चीजों के बारे में पता होता है। इसके अलावा और भी बहुत सी चीजे है जो महिला पहली प्रेगनेंसी में करती है लेकिन दूसरी प्रेगनेंसी में ये सब कम देखा जाता है। तो आइये अब जानते हैं की महिला की पहली और दूसरी प्रेगनेंसी में क्या फ़र्क़ होता है।
महिला की पहली और दूसरी प्रेगनेंसी में क्या फ़र्क़ होता है:-
महिला का गर्भवती होना उसकी जिंदगी का सबसे खास लम्हा होता है क्योंकि एक नन्हा मेहमान उनकी जिंदगी को रोशन करने के लिए आता है। ऐसे में जब महिला पहली बार प्रेग्नेंट होती है और जब दूसरी बार प्रेग्नेंट होती है तो उसमे कुछ फ़र्क़ देखा जाता है क्या आप भी जानने के लिए उत्सुक हैं की वो फ़र्क़ क्या होता है।
राय कम लेती है:-
पहली प्रेगनेंसी के दौरान महिला सभी से पूछती है चाहे वो उनकी माँ हो या सास भाभी हो या ननंद की प्रेगनेंसी के समय क्या सही होता है क्या नहीं। लेकिन जब महिला दूसरी बार माँ बनती है तो उसे ज्यादातर जानकारी होती है की गर्भावस्था में क्या चीज महिला और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सही है या नहीं है। तो ऐसे में दूसरी प्रेगनेंसी के दौरान महिला राय कम लेती है।
डर कम होता है:-
जब महिला पहली बार माँ बनने जा रही होती है तो कहीं न कहीं उसके मन में डर रहता है की उसकी थोड़ी सी लापरवाही उसे और उसके शिशु को किसी तरह का नुकसान न पहुंचा दें, लेबर पेन को लेकर डर होता है या सिजेरियन डिलीवरी को लेकर मन में डर होता है। लेकिन दूसरी बार महिला को देखा जाता है की उसमे इस चीज को लेकर डर कम होता है क्योंकि प्रेगनेंसी के दौरान और प्रसव के दौरान उसे अपना ख्याल कैसे रखना है इससे वो अवगत हो जाती है।
उत्साह भी होता है कम:-
शिशु के आने के ख्याल से ही मन में नई उमंगें उठने लगती है। बच्चे के हर पहले अहसास के लिए महिला बहुत उत्साहित रहती है। लेकिन देखा जाता है की दूसरी बार माँ बनने का उत्साह महिला में थोड़ा कम हो जाता है हालांकि शिशु के आने की ख़ुशी उतनी ही होती है। लेकिन महिला पहली प्रेगनेंसी में जिस तरह से हर पल के लिए उत्साहित रहती है दूसरी प्रेगनेंसी में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है।
खान पान को लेकर कम सतर्क होती है:-
महिला जो भी खाती है वो शिशु को भी मिलता है, उसी से उसके बेहतर विकास में मदद मिलती है। ऐसे में पहली प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादातर महिलाएं हर एक चीज के लिए डॉक्टर से राय लेती है की उनके लिए क्या खाना सही है और क्या नहीं। जबकि दूसरी प्रेगनेंसी के दौरान महिलाएं खान पान को लेकर कम सतर्क रहती हैं और वो खाती है जो उनका मन करता है। बस वो खान पान के प्रति लापरवाही नहीं करती है, लेकिन दूसरी प्रेगनेंसी में वो खान पान के लिए डॉक्टर से कम राय लेती है।
किताबे कम पढ़ती है:-
पहले शिशु के आने पर महिला से कोई लापवाही न हो इसके लिए महिला शिशु के स्वास्थ्य से लेकर उसके खान पान के लिए बहुत सी किताबे और ब्लोग्स आदि को पड़ती है। जिससे उन्हें नवजात की गर्भ में और जन्म के बाद किस तरह केयर की जाए इसका पता चल सके। लेकिन दूसरी बार महिलाओ का यह शौक भी कम हो जाता है क्योंकि पहले शिशु की केयर करने के बाद तो वो खुद दूसरों को राय देना शुरू कर देती है, की नवजात शिशु की केयर करने के लिए किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, और उसके लिए क्या सही होता है और क्या सही नहीं होता है।
क्या सही है क्या नहीं इसके बारे में पता चल जाता है:-
प्रेगनेंसी के दौरान महिला बहुत से नए अनुभव से गुजरती है, ऐसे में पहली बार महसूस होने वाले हर लक्षण के लिए महिला दूसरों से पूछती है और घबरा जाती है। लेकिन दूसरी बार की प्रेगनेंसी के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं होता है क्योंकि महिला प्रेगनेंसी में होने वाले सभी बदलाव का अनुभव ले चुकी होती है। जिससे उसे पता चल जाता है की प्रेगनेंसी के दौरान उसके लिए क्या चीज सामान्य है और क्या उसे नुकसान पहुंचा सकती है। और उसे डिलीवरी के समय किस तरह महसूस होता है इस बारे में भी पता चल जाता है।
तो यह हैं कुछ फ़र्क़ जो की महिला में पहली और दूसरी प्रेगनेंसी के दौरान देखने को मिलते हैं। लेकिन प्रेगनेंसी को लेकर ख़ुशी उतनी ही होती है क्योंकि शिशु के आने से आपका परिवार पूरा होता है, साथ ही घर में आने वाला नन्हा मेहमान सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट लता है। और घर की खुशियों को बढ़ाता है लेकिन महिला में पहली प्रेगनेंसी के दौरान और दूसरी प्रेगनेंसी के दौरान थोड़ा फ़र्क़ देखा जाता है, क्योंकि पहली प्रेगनेंसी में महिला को ज्यादा जानकारी नहीं होती है जबकि दूसरी प्रेगनेंसी में महिला बहुत सी चीजों के बारे में जान जाती है।