डिलीवरी के बाद के 24 घंटे शिशु के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। डिलीवरी के तुरंत बाद ही हार्मोन्स बहुत तेजी से बदलने लगते है और उसी के साथ महिला का इमोशनल होना भी इस समय में स्वभाविक हो जाता है। एक छोटे से नन्हे से प्यारे से शिशु की देखभाल बहुत ही जिम्मेदारी भरा और प्यारा काम होता है।

इस नन्हे से शिशु का जिसका नो महीनो का इंतज़ार होता है उसकी बहुत ही ध्यानपूर्वक देखभाल का समय आ गया है। डिलीवरी के शुरूआती समय में बेबी को अच्छे से पकड़ना, उठाना, दूध पिलाना आदि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। आइये जानते है के शिशु का किस प्रकार रखें ध्यान जिससे शिशु की सेहत अच्छी बने रहें।

गर्भनाल की देखभाल

गर्भावस्था के दौरान पुरे नो महीने तक गर्भनाल ही आपके और आपके शिशु के बीच की जीवनदायनी होती है, इसी गर्भनाल के द्वारा आपका प्यार, जरुरी पोषक तत्व, ऑक्सीजन आदि शिशु तक पहुँचता है। जब बेबी दुनिया को देखने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है तब इस गर्भनाल को काट दिया जाता है और इसकी जरुरत नहीं रहती है। इसी गर्भनाल का कुछ हिस्सा शिशु के पेट पर रह जाता है। शिशु के जन्म के बाद से एक सप्ताह से लेकर एक महीने तक गर्भनाल का यह हिस्सा खुद पर खुद ही झड़ जाता है। गर्भनाल की जड़ गिरने के बाद शिशु की धुनि बहुत ही नरम दिखती है हो सकता है यह आपको कुछ खून की धब्बे भी दिखे पर घबराइए मत यह एक साधारण सी प्रक्रिया है।

गर्भनाल की देखभाल का सवाल इसलिए उठता है के शिशु को गर्भनाल को साफ़ और सुखाकर रखें। और कभी भी इसे खींच कर मत निकालिये, सामान्य प्रक्रिया द्वारा ही अपने आप इसके झड़ने का इंतज़ार करे।

स्तनपान

नवजात शिशु के लिए स्तनपान बहुत ही जरुरी है, साथ ही शिशु को स्तनपान करवाना एक बहुत ही संघर्षपूर्ण कार्य है जिसे करते समय आप चिड़चिड़े, परेशान और गुस्सा भी हो सकते है। माँ का दूध शिशु के लिए सबसे जरुरी और पोषक तत्वों से भरपूर होता है और स्तनपान करवाना सिर्फ शिशु की सेहत के लिए ही जरुरी नहीं बल्कि माँ की सेहत के लिए भी जरुरी है। बच्चे के जन्म से दो घंटे के अंदर अंदर बच्चे को पहला स्तनपान करवाना चाहिए। शुरुआत माँ का दूध गाढ़ा और पीला होता है, यह गाढ़ा और पीला दूध सभी जरुरी नुट्रिएंट्स से भरपूर होता है इसीलिए इसे कोलोस्ट्रम भी कहते है।

यह पहला दूध या कोलोस्ट्रम एंटीऑक्सीडेंट तत्वों और प्रोटीन से भरपूर शिशु के लिए बहुत ही जरुरी होता है। दूध पिलाते समय अपनी कमर को अच्छे से सहारा दे और आरामदायक स्थिति में बैठे। ज्यादातर माँ ब्रैस्ट को शिशु की तरह लेकर जाती है पर ऐसा न करें बल्कि शिशु को अपनी तरह लाये। शिशु का पेट मुट्ठी भर होता है जल्द ही भर जाता है और जल्द ही खाली भी हो जाता है। ऐसे में जरुरी है के दो घंटे के अंतराल में शिशु को स्तनपान करवाएं।

डकार

शिशु को स्तनपान करवाने के बाद डकार जरूर दिलवाये। माना जाता है के दूध पीते समय शिशु के अंदर हवा भी चली जाती है जिससे उनके पेट में हवा भी भर जाती है डकार लेने से हवा बाहर निकल जाती है। यदि हवा बाहर ना निकले गैस के कारण शिशु को पेट में दर्द और जलन भी हो सकती है। जिसके कारण दूध भी नहीं पचता और दूध वापस बहार आ जाता है।

डकार दिलवाने के लिए शिशु को दूध पिलाने के बाद कंधे से लगाकर बेबी की कमर को सहलाये इससे शिशु को दस से पंद्रह मिंट तक डकार आ जाती है।

वजन

नवजात शिशु के वजन का ध्यान रखना बहुत ही जरुरी होता है क्योंकि वजन से बेबी की सही ग्रोथ का पता चलता है। ज्यादातर नवजात शिशुओं का वजन से 2 से 4 किलों के बीच होता है। डॉक्टरों के अनुसार पहले सप्ताह के अंत शिशु का वजन कम हो जाता है क्योंकि इस समय में बेबी के शरीर में बहुत सा फ्लूइड कम हो जाता है। लेकिन दूसरे सप्ताह से बेबी का वजन बढ़ने लगता है।

बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सही वजन का बढ़ना बहुत जरुरी है। इसीलिए अपने शिशु के वजन का हर सप्ताह रिकॉर्ड जरूर लिखे। अगर आपको लगे के शिशु का वजन सहीं तरीके से नहीं बढ़ रहा है तो अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें। वह बच्चे का अच्छे चेक अप कर के बताएंगे और साथ डाइट में जरुरी पोषक तत्व को शामिल करने के लिए कहेंगे जिससे शिशु का सही वजन बढ़े।

नींद

बच्चे के जन्म के बाद आप अपनी नींद को भूल जाइये क्योंकि आप देखेंगे की शिशु पूरा समय जागता रहता है, जब आप चाहेंगे की शिशु सोये तो वह जागेगा और जब आप सोचेंगे की जागे तभी वह अपनी नींद लेगा। हो सकता है बेबी की नींद की प्रक्रिया आपको बुरी तरह से तंग कर दे पर यही तो हिस्सा है माँ बनने का। बच्चा जब चाहेगा तभी सोयेगा। अगर आपका शिशु पूरी नींद नहीं ले रहा तो हो सकता है के वह किसी तकलीफ में हो बच्चे का डायपर चेक करें, भूखा न हो दूध पिलाये कही पेट में गैस ना बनी हो देखे की कही शिशु का पेट ज्यादा टाइट तो नहीं हो रहा है। धीरे धीरे आप अपने शिशु के नींद की प्रक्रिया को खुद ही समझ जायेंगे।

शिशु को नहलाना

जन्म के शुरूआती 3 या 4 दिनों में शिशु का ना नहलाये क्योंकि शिशु के लिए बाहर का तापमान बहुत ही अलग होता है। इसीलिए सॉफ्ट कपड़ा या कॉटन की मदद से बच्चे को साफ़ करें। आजकल बाजार में शिशु के सॉफ्ट वेट टिश्यू भी मिलते है जो बच्चे की स्पॉन्ज करने के काम आते है। ना नहलाने का मतलब ये नहीं होना चाहिए के शिशु गन्दगी में रहे, बेबी की साफ़ सफ़ाई का विशेष ध्यान रखे। हर बार डायपर चेंज करते समय हल्के गर्म पानी का इस्तमाल करें शिशु को साफ़ करने के लिए।

शिशु को जब भी नहलाये हल्के गर्म पानी से ही नहलाये। बहुत से लोग बेबी को रोजाना नहलाते है, आप चाहें तो शिशु सप्ताह में तीन बार भी नहला सकते है। ऐसा इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि शिशु की स्किन बहुत ही सॉफ्ट होती है ज्यादा साबुन या पानी के इस्तेमाल से शिशु की स्किन पर एलर्जी या रैश भी पड़ सकते है। बेबी के बालों को भी रोजाना धोने की जरुरत नहीं है सप्ताह में दो या तीन बार बालों को धोना बहुत होता है।

आशा यह सभी चीजे आपको आपके शिशु की देखभाल में काम आएंगी।

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